PHOTO-KRISHNA, MODEL & GRAPHICS DESIGN BY R. K. SRIVASTAVA |
आत्म-समर्पण
बीते हुए, हर एक पल को
चाहकर भी, भुलाया नहीं जाता
दिल से सभी बातों को
यूँ ही लगाया नहीं जाता
जिस पल तुम मिली, उस पल को
चाहे तो भी मिटाया, नहीं जाता
समझ गई तुम, मेरे एहसासों को
समझे हुए को, समझाया नहीं जाता
मैं तैयार था, सबकुछ बताने को
तुम से तो, पूछा भी नहीं जाता
तुम छोड़ कर चली गई, हमें मरने को
अपनो को ऐसी सजा, दिया नहीं जाता
देखता हूँ, अपने अहंकार की दीवारों को
तोड़कर इसको,तुम्हें बुलाया नहीं जाता
आओगी, उम्मीद थी इन आँखों को
आसुओं के, सैलाब को रोका नहीं जाता
संग जीने की, आदत हो गई थी मुझको
तेरे बिना अब, जिया भी नहीं जाता
अब आ जाओ, कर दो गुलजार मेरी दुनिया को
तेरे दर पे खड़ा हूँ, यहाँ से जाया नहीं जाता
बदल डालूँगा तुम्हारी खातिर, अपनेआप को
इससे ज्यादा आत्म-समर्पण, किया नहीं जाता
-राकेश कुमार श्रीवास्तव
बेहतर लेखन !!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब।
ReplyDeleteभावों को कविता में ढालने का अच्छा प्रयास है.
ReplyDeleteअति सुंदर
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