(पृष्ठभूमि :- ये जीवन की त्रासदी है की पति या पत्नी ,एक ही घर के छत के नीचे रहते हुए अलग अलग
ख्वाहिश
सपनों के साथ जीते है और ताउम्र एक दुसरे से असंतुष्ट रहते हुए तन्हाई का जीवन जीते
है।)
गुनगुनाने की चाह अपने घर में और,
रोने को मुझको एक कोना न मिला ।
कई सपनें देखे अपने मन में और ,
सपनों को सच करने का आसरा न मिला।
मातम से घिरा रहता हूँ अपने ही घर में और.
महफ़िल-ए-रंग जमाते हुए मैं सब को मिला।
अपनापन ढूंढ़ने लगा बेगानों में और.
खुल कर हँस सकूँ ऐसा मौका न मिला।
कोई मुझे अपने घर में जिन्दा कर दो,
मुर्दा पड़ा हूँ, मुझे सुपुर्द-ए-खाक न मिला।
-राकेश कुमार श्रीवास्तव (०९/०४/२०१२)
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hundred percent true bhaiya and very practical rachna.
ReplyDeleteBitter Truth!
ReplyDeleteI have No words to describe this Really Heart Touched !
AWesome creativity !
(y)
This is a very beautiful and poignant kavita...
ReplyDeleteI liked the last 4 lines very much!