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हादसा
तुम गई
तो, ज़िन्दगी
में, छा गई तन्हाईयाँ,
दिख रही
है, हर
तरफ अब, तेरी ही परछाइयाँ।
था
जगमगाना, जिस
महल को, अब
अँधेरा है वहाँ,
यहाँ
राज है, खामोशियों का, जहाँ बजनी
थी शहनाइयाँ।
क्या
खता मुझसे हुई, क्यों
सजा मुझको मिली,
ग़र खता
मुझसे हुई तो, माफ़
कर देता मेरी नादानियाँ।
क्यों
छीन ली, उसकी
ज़िन्दगी, वो
चिड़िया थी, मेरे
बाग़ की,
सदा
चहकती मेरे
बाग़ में, अब फैली है खामोशियाँ।
अब मेरा तो पागलों सा हाल है,
जीना मेरे
लिए दुःश्वार है,
अब करम मुझ पर करो तो, ख़त्म हो, मेरी परेशानियाँ।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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