खामोशियाँ
तेरी खामोशियाँ, मुझको बेचैन करती है,
हमारे बीच की दूरियाँ, बेचैन करती है।
तेरी जुल्फ़ों को छूकर चली है जो ये हवा,
हवा में बसी खुशबू, मुझे बेचैन करती है।
सबसे मिलती हो खुल कर, सभी ख़ास हैं तेरे,
यूँ मुझे अजनबी समझना, बेचैन करती है।
जब तुम थी मेरे साथ, ये इल्म ना था मुझको,
तेरी कमी मेरे घर में, बेचैन करती है।
माना खता थी मेरी, दिल तेरा दुखाया था,
तुझे नहीं मनाने की जिद, बेचैन करती है।
बड़ी उम्मीद ले कर तेरे दर पर आया हूँ,
नाउम्मीदी का ख्याल भी, बेचैन करती है।
अब जो भी हो, दिल की बात कह रहा है “राही”,
तेरी खामोशियाँ, अब भी, बेचैन करती है। © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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