भ्रष्टाचार
दूसरों के गिरेबान में झाँकते हो,
दूसरों का ज़मीर नापते हो,
दूसरों को भ्रष्ट कहने से पहले
क्या अपनी औकात जानते हो।
भ्रष्टाचार से परेशान हैं सब,
इसको तुमने छोड़ा था कब,
भ्रष्टाचार की घनी छाँव में
तुम भी तो पलते थे तब।
इसके चलते तुमने इंसानियत को छोड़ दिया ,
चंद सिक्कों के ख़ातिर ज़मीर अपना बेच दिया ,
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां दिखाई ना दे तेरा असर
माँ भारती के आँचल को तुने तार-तार ही कर दिया।
जब चला भ्रष्टाचार पर ख़ंजर,
बदल सा गया यहाँ का मंजर,
लोग तो परेशां है, फिर भी खुश हैं
कि उखड़ ही जाएगी भ्रष्टाचार की जड़।
आओ ! हम ये सौगंध उठायें,
ले-देकर अब काम ना चलायें,
असमानता का हो खात्मा
हम सब भारतीय एक हो जायें।
गिरेबान में झाँकना - दोषों को देखना
चित्र http://www.palpalindia.com/ से साभार
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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