वाक्यांश - परिस्थिति
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ऑफिस से घर आते-जाते सड़क के किनारे झुग्गी-झोपड़ी की बस्ती से गुजरते हुए जब मेरी नज़र मासूम, लाचार, बेबस, गरीब और संघर्षरत मजबूर बच्चों एवं औरतों पर पड़ती है तो मेरे अंदर अक्सर उनके प्रति संवेदनाएं जगती है।
एक शाम जब मैं ऑफिस से घर आया तो देखा कि मेरी पत्नी पुराने कपड़ों के बदले प्लास्टिक का टब किसी फेरीवाले से ले रहीं है। मैंने चुप-चाप घर के अंदर प्रवेश किया। कुछ ही देर में मेरी पत्नी विजयी भाव लिए मेरे सम्मुख खड़ी हो गई और कहने लगी देखो मैंने पुराने कपड़ों के बदले कितना सुंदर और टिकाऊ टब ख़रीदा है। मैंने भी मुस्कुराते हुए उनकी हाँ में हाँ मिलाई। जब वह चाय-बिस्किट के साथ पुनः उपस्थित हुई तो
मैंने कहा - "बच्चों के पुराने कपड़े तो तुमने संभाल कर रखें हैं न।"
श्रीमती जी ने कहा - "हाँ ! रखें तो हैं। क्यों ? ।
मैंने कहा - "तो क्यों न उन कपड़ों को झुग्गी वाले बस्ती के बच्चों में वितरित कर दें।"
श्रीमती जी ने कहा - "विचार तो अच्छा है परन्तु क्या वे इन पुराने कपड़े को स्वीकार करेंगे।"
मैंने कहा - " जो तुमने पुराने कपड़ों के बदले वस्तु खरीदी है, उन पुराने कपड़ों को कोई न कोई गरीब आदमी ही खरीदता है। "
श्रीमती जी ने कहा - " आप सही कह रहें हैं।"
चाय पीने के बाद हम दोनों ने मिलकर धुले और इस्त्री किए हुए कपड़ों को साइज के हिसाब से पैंट-शर्ट का सेट तैयार कर एक बड़े झोले में लेकर स्कूटर से बस्ती में पहुँचे। छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे और एक गर्भवती महिला पानी की केनी लेकर अपने झुग्गी के तरफ जा रही थी। मैंने उस महिला को आवाज दी और वह हमदोनों के पास आकर बोली - " क्या बात है साब।"
मेरी पत्नी ने उससे पूछा - " तुम्हें कुछ छोटे साइज के पुराने कपड़े चाहिए। "
"क्यों नहीं मेमसाब, दे दो। " उसने जवाब दिया।
वाक्यांश - "शब्द–समूह के लिए एक शब्द"