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Thursday, July 28, 2016

वाक्यांश - परिस्थिति


वाक्यांश  -  परिस्थिति 

https://freewill.gr से साभार 

ऑफिस से घर आते-जाते सड़क के किनारे झुग्गी-झोपड़ी की बस्ती से गुजरते हुए जब मेरी नज़र मासूम, लाचार, बेबस, गरीब और संघर्षरत मजबूर बच्चों एवं औरतों पर पड़ती है तो मेरे अंदर अक्सर उनके प्रति संवेदनाएं जगती है। 

            एक शाम जब मैं ऑफिस से घर आया तो देखा कि  मेरी पत्नी पुराने कपड़ों के बदले प्लास्टिक का टब किसी फेरीवाले से ले रहीं है। मैंने चुप-चाप घर के अंदर प्रवेश किया। कुछ ही देर में मेरी पत्नी विजयी भाव लिए मेरे सम्मुख खड़ी हो गई और कहने लगी देखो मैंने पुराने कपड़ों के बदले कितना सुंदर और टिकाऊ टब ख़रीदा है।  मैंने भी मुस्कुराते हुए उनकी हाँ में हाँ मिलाई। जब वह चाय-बिस्किट के साथ पुनः उपस्थित हुई तो 
मैंने कहा - "बच्चों के पुराने कपड़े तो तुमने संभाल कर रखें हैं न।" 
श्रीमती जी ने कहा - "हाँ ! रखें तो हैं। क्यों ? । 
मैंने कहा - "तो क्यों न उन कपड़ों को झुग्गी वाले बस्ती के बच्चों में वितरित कर दें।" 
श्रीमती जी ने कहा - "विचार तो अच्छा है परन्तु  क्या वे इन पुराने कपड़े को स्वीकार करेंगे।"
मैंने कहा - " जो तुमने पुराने कपड़ों के बदले वस्तु खरीदी है, उन पुराने कपड़ों को कोई न कोई गरीब आदमी ही खरीदता है। "
श्रीमती जी ने कहा - " आप सही कह रहें हैं।" 
चाय पीने के बाद हम दोनों ने मिलकर धुले और इस्त्री किए हुए कपड़ों को साइज के हिसाब से पैंट-शर्ट का सेट तैयार कर एक बड़े झोले में लेकर स्कूटर से बस्ती में पहुँचे। छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे और एक गर्भवती महिला पानी की केनी लेकर अपने झुग्गी के तरफ जा रही थी।  मैंने उस महिला को आवाज दी और वह हमदोनों के पास आकर बोली - " क्या बात है साब।"
मेरी पत्नी ने उससे पूछा - " तुम्हें कुछ छोटे साइज के पुराने कपड़े चाहिए। "
"क्यों नहीं मेमसाब, दे दो। " उसने जवाब दिया। 

श्रीमती जी सबसे छोटे कपड़े उसे देने लगी। उस महिला ने झोले में झाँका और कुछ और कपड़े ले लूँ कह कर दो जोड़े कपड़े उठा कर हॅसते हुए श्रीमती का चेहरा देखने लगी। कपड़ो का झोला और उस महिला द्वारा जमा किए गए कपड़ों को देख कर बच्चे समझ गए की हमलोग कपड़ा बाँटने आए हैं। इतना समझते ही वहाँ खेल रहे सभी बच्चे हमलोगों की तरफ लपके और बिना पूछे ही झोले पर हमला बोल दिया। किसी के हाथ में पैंट किसी के हाथ में शर्ट लगा। मेरी पत्नी चिल्लाते रह गई "रुको सब को साइज के हिसाब से कपड़े देती हूँ परन्तु बच्चे तो कपड़ों को हवा में लहराते हुए वहाँ से ऐसे गायब हुए मानो यहाँ बच्चे रहते ही नहीं हैं। गर्भवती महिला भी बिना कुछ कहे वहाँ से मुस्कुराती हुई चली गई।  मेरी पत्नी स्तब्ध थी। हम लोग वहाँ से लौट कर घर आ गए।

वाक्यांश - "शब्द–समूह के लिए एक शब्द"

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"



Thursday, July 21, 2016

छतबीर चिड़ियाघर की सैर

छतबीर चिड़ियाघर की सैर 


गर्मियों की छुट्टी हो और अपने छोटे बच्चों के साथ घर आए मेहमान के छोटे बच्चे हो तो आप  समझ सकते है की मेजबान की क्या हालत होगी?  ऐसे में बच्चों की पसंद की जगह घुमाने से बेहतर और कोई विकल्प मेरे पास नहीं था।  तो ऐसे में मेरे एक सहकर्मी ने छतबीर चिड़ियाघर की सैर का सुझाव दिया और मैंने भी झट-पट अपने एक दिन की अवकाश अर्थात 6 जुलाई 2016 को सभी बच्चों के साथ निजी वाहन से  छतबीर चिड़ियाघर के लिए निकल पड़े । छतबीर चिड़ियाघर जीरकपुर, पंजाब में स्थित है और कपूरथला से इसकी दूरी लगभग 200 कि.मी. है। पिछली रात बारिश होने से सुबह का मौसम सुहाना हो गया था और हमारी यात्रा प्रातः 7 बजे नास्ते के उपरांत शुरू हो गई। बारिश होने के कारण प्रकृति का  नज़ारा बहुत सुंदर लग रहा था। पेड़ों के पत्ते धुल कर गहरे हरे रंग में चमक रहे थे और सड़के भी धुल कर काली चमचमाती नज़र आ रही थी। एफ. एम. रेडिओ पर बज रहे गानों पर बच्चे अपनी आवाज़ को मिलाकर और वातावरण को और मधुर बना रहे थे। मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था कि नए गानों को मैं समझ नहीं पा रहा था परन्तु बच्चे नए-पुराने सभी गानों  को समान रूप से आनंद ले रहे थे और बीच-बीच में नमकीन, आम का जूस, चिप्स आदि का दौर चल रहा था।
जब मेरी गाड़ी NH-7 से उतर कर छत गांव की तरफ थोड़ी ही दूर चली तो प्रकृति के बदले स्वरूप को देख सहज अनुमान लगाया जा सकता था कि छतबीर चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार आ गया। हमलोग करीब सुबह 11 बजे वहां पहुंच गए थे।  पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो आस-पास एक आइसक्रीम का स्टॉल,एक स्नैक्स का स्टॉल, ऑटो रिक्शा स्टैंड और सुलभ शौचालय जो की बहुत साफ-सुथरा था, दिखा। जंगलों के रास्ते करीब 250 मीटर पैदल चलने पर छतबीर चिड़ियाघर का प्रवेश द्वार दिखा।

प्रवेश टिकट ले कर अभी हमलोग द्वार के अंदर ही आए थे की एक और टिकट काउंटर दिखा वह बैटरी से चलने वाली गाड़ी  के लिए था, जिसका किराया बच्चों के लिए 25 रु. और बड़ो के लिए 50 रु. था।  यह गाड़ी, चिड़ियाघर के सभी 18 स्थलों को दर्शन करा कर मुख्य द्वार तक सैर कराती है।  यह शेर सफारी और हिरण सफारी नहीं कराती है।  इन दोनों के लिए अलग से 50-50  रु. के टिकट प्रति सवारी लेनी पड़ती है।

 खैर! हमलोगों ने सोचा प्राकृतिक आनंद लेते हुए चिड़ियाघर की सैर करेंगे और शेर सफारी अवश्य करेंगे। अतः हमलोग पैदल ही चल पड़े।


हमलोगों की पहली मुलाकात सफेद रंग के बाघ से हुई वह बड़े आराम से बैठा हुआ था, असल में यह भारत का गौरव रॉयल बंगाल टाइगर था। इसके बाद दरियाई घोड़े से मुलाकात हुई। दरियाई घोड़े भाई साहब ने बड़ी मुश्किल से अपना सिर थोड़ी देर के लिए पानी से बाहर निकाला और फिर पानी के अंदर तैरने लगे ।  मेरी बिटिया नाराज हो गई कि मैंने दरियाई घोड़े का फोटो लेने में देर कर दी।  बिना फोटो लिए बेटी हिलने का नाम नहीं ले रही थी और दरियाई घोड़े साहब थे कि अपना सिर बाहर निकालने को तैयार नहीं थे। बेटी को किसी तरह समझाया की लौट कर फिर यहाँ पर आएंगे। आगे चलने पर एमु, हाथी और फिर शेर सफारी का टिकट घर

दिखाई दिया। सभी जंगल के राजा शेर से मुलाकात करने को आतुर थे। टिकट लेकर खिड़कियों पर लोहे की जाली से सजी बस में बैठ गए। बस में ही स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स का मजा लिया। बच्चे बहुत उत्साहित थे की खुले जंगल में शेर के दर्शन करेंगे।  बस खुली और एक मिनट के अंदर कुछ दूरी पर एक शेर का दर्शन हुआ उसके बाद पिंजरे में शेर को देख निराशा हुई। हाँ ! खुले में मोर देख कर बच्चों ने खूब तालियां बजाई। कुल मिलाकर 50 रु. में शेर सफारी करके बच्चे ठगा सा महसूस कर रहे थे। उसके बाद चीता, लकड़बघ्घा , जंगली बिल्ली, ज़ेबरा और तरह-तरह के हिरण को देखते हुए हमलोग "रात का घर" (नॉक्टर्नल हाउस) देखने पहुंचे।  इस  घर में प्रवेश करते ही रात का एहसास होता है जिससे रात में गतिविधि करने वाले जीवों जैसे उल्लू, चमगादड़, साही. कस्तूरी बिल्व और सियार का क्रिया-कलाप का आनंद हमलोगों ने लिया।
रेप्टाइल हाउस में प्रवेश करते ही अजगर, कोबरा ,गिरगिट, छिपकली,साँप आदि को देख बच्चे सहमे हुए से थे। इस चिड़ियाघर को एक पिकनिक स्पॉट की तरह विकसित किया गया है।  थोड़ी थोड़ी दूर पर झूले, बैठने के लिए छतदार शेड, पीने योग्य ठंडा जल, रेस्टोरेंट, झील, तालाब और हरे-भरे लॉन इस चिड़ियाघर को और आकर्षक बनाते है।  चिड़ियाघर की सैर के बाद सभी थक गए थे और भूख भी लग रही थी अंत में बंदर महाराज के दर्शन उपरांत हमलोग गेट के बाहर आये। दिन के 1 :30  बजे हमलोगों ने आइसक्रीम स्टॉल के पास खाने के साथ-साथ आइसक्रीम का भी आनंद लिया और रॉक गार्डन, चंडीगढ़ की सैर के लिए निकल पड़े। 

छतबीर चिड़ियाघर का संक्षिप्त परिचय :

छतबीर किसी समय पटियाला के महाराजा का शिकारगाह हुआ करता था और आज यह एक वन्यजीवों के लिए स्वर्ग है। छतबीर चिड़ियाघर 13 अप्रैल , 1977 को  पंजाब के तत्कालीन माननीय राज्यपाल श्री महेन्द्र मोहन चौधरी के द्वारा उदघाटन  किया गया और उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण महेंद्र चौधरी प्राणी उद्यान रखा गया। यह चिड़ियाघर 202 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इस चिड़ियाघर को  शुरू करने के लिए जानवरों की छोटी संख्या को  गुवाहाटी चिड़ियाघर, असम से लाया गया था जो अब फल-फूल कर उत्तरी भारत का सबसे बड़ा चिड़ियाघर बन गया है। शेर सफारी , हिरण सफारी, छिछला  झील, प्राकृतिक दृश्यों से हरे भरे लॉन और प्राकृतिक वन पर्यावरण इस चिड़ियाघर की पहचान हैं। यह चिड़ियाघर सरीसृप / पशु / पक्षियों के दुर्लभ और लुप्तप्राय हो चुके  82 प्रजातियों का  आरामदायक बसेरा है। इस चिड़ियाघर में कुल पशुधन की आबादी 850 है। राजपुरा,पंजाब से छतबीर चिड़ियाघर की दूरी 25 कि. मी. और चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से 17.5 कि. मी. है।

"यदि आप वन्यजीवों की रक्षा करना चाहते है तो पंजाब राज्य के सभी चिड़ियाघर से किसी भी वन्यप्राणी को मासिक/वार्षिक पोषण खर्चे पर गोद ले सकते है। गोद लेने वाले के नाम का तख्ती चिड़ियाघर में लगाया जाता है एवं अन्य सुविधा चिड़ियाघर की तरफ से दी जाती है।"


चिड़ियाघर सप्ताह में छह दिन, सुबह 9.00 AM से शाम 5.00 PM तक  खुला रहता है। यह प्रत्येक सोमवार तथा 15 अगस्त, 2 अक्टूबर और 26 जनवरी  को बंद रहता है ।

सलाह:-  बैटरी से चलने वाली गाड़ी प्रवेश द्वार पर लेना एवं लायन सफारी न करना समझदारी होगी।

चलते-चलते कुछ मनमोहक तस्वीरें :-








 - © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"




Thursday, July 14, 2016

हादसा


www.flickr.com/photos/palosaari/ से साभार 


हादसा




तुम गई तो, ज़िन्दगी में, छा गई तन्हाईयाँ,

दिख रही है, हर तरफ अब, तेरी ही परछाइयाँ। 


था जगमगाना, जिस महल को, अब अँधेरा है वहाँ,

यहाँ राज है, खामोशियों का, जहाँ बजनी थी शहनाइयाँ। 


क्या खता मुझसे हुई, क्यों सजा मुझको मिली,

ग़र खता मुझसे हुई तो, माफ़ कर देता मेरी नादानियाँ। 


क्यों छीन ली, उसकी ज़िन्दगी, वो चिड़िया थी, मेरे बाग़ की,

सदा चहकती मेरे बाग़ में, अब फैली है खामोशियाँ। 


अब मेरा तो पागलों सा हाल है, जीना मेरे लिए दुःश्वार है,

अब करम मुझ पर करो तो, ख़त्म हो, मेरी परेशानियाँ। 

                                              - © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"