कसक
अँधेरों
में खुशियों की तलाश कबतक,
उँगलियों के स्पर्श से सुख की तलाश कबतक.
हमसफ़र
गर तेरे एहसासों को ना समझे
तो,
बेचैनियों
के साथ जिन्दगीं बिताओगी कबतक.
अपने
हिस्से की खुशियों को दफ़न
करके,
झूठी
मुस्कान से दर्द छुपाओगी कबतक.
अँधेरे
में जो दर्द बह गए,
बन कर
आंसू,
सूनी
आँखों को काजल से सजाओगी कबतक.
जख्म
हो शरीर पर तो इलाज़ है उसका,
जख्मी
दिल के साथ रिश्ता निभाओगी
कबतक.
जिस
रस्मों-रिवाजों
की वजह से ठुकराया था मुझे
उन
रस्मों-रिवाजों के सितम तुम सहोगी कबतक.
तेरे
हालात को देखकर ये ख्याल आया
है मुझे,
आखिर
तेरे प्यार
का इंतज़ार ,
"राही"
करे कबतक.
-
© राकेश
कुमार श्रीवास्तव "राही"
No comments:
Post a Comment
मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'