यादें
जीवन
कैसे पल-पल
बीता, याद
नहीं कुछ आज तक,
चंद खट्टी-मीठी यादों के साये में,
जी रहा
हूँ आज तक।
बेफिक्री
में जीवन बीता,
जब तक
माँ का साया था,
अब
ममतामयी माँ की यादों में,
जी रहा
हूँ आज तक।
मेरा जीवन बेहतर करने को,
पापा
फटकार लगाते थे,
मुझे
बचाने में,
फिक्रमंद
माँ,
याद मुझे
है आज तक।
बड़ी
बहन का प्यार अनोखा,
संबल
मुझको देता था,
मेरे
लिए सबसे लड़ती-भिड़ती,
याद मुझे
है आज तक।
पढ़-लिख
कर जब मिली नौकरी,
वो भी
क्षण अनोखा था,
पिता
ने गर्व से मुझे गले लगाया,
याद मुझे
है आज तक।
सेहरा
बाँध जब घोड़ी पर चढ़ने को,
जैसे
मैं तैयार हुआ,
गले
लगाकर माँ का रोना,
याद मुझे
है आज तक।
हुई
शादी,
मिला
चाँद का टुकड़ा,
खुशियों की सौगात मिली,
चाँद
का साथ मिला जीवन में,
निभा
रही है साथ आज तक।
अब अशक्त सा पड़ा हुआ हूँ,
जीवन से
अब डरा हुआ हूँ,
रंजो-गम
से क्यों भरा है जीवन,
नहीं
समझा हूँ आज तक। - © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"