बे-फ़िक्रे
बे-फ़िक्र हुआ
“जाना”,
जब से तुम को जाना,
सजदे में रहता हूँ,
तुम को ही रब माना।
मद-मस्त सा रहता
हूँ,
तेरे ख्यालों में जीता हूँ,
तन्हाइयों में अक्सर
तुझको,
अपने अन्दर ही पाता
हूँ।
न कुछ खोना है, न पाना है,
तेरी राज़ी-ब-रज़ा में
जीना है,
जब फ़िक्र करे तू
मेरी,
तो बे-फ़िक्र हो,
मुझे जीना है।
न भुला हूँ, न भटका
हूँ,
जब तेरे दिल में ही
बसता हूँ,
तो क्यूँ फ़िक्र करूँ
मैं अपनी,
बे-फ़िक्र हो कर जीता
हूँ।
जब आसमां-जमीं है
तेरी,
और जब प्यार में है
तू मेरी,
तो बे-फ़िक्र क्यों न
हो जाऊं,
जब सारी कायनात है
तेरी।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"