फासले हमने जो बनाए, आओ इसे दूर करें
दूरियाँ कम हो, इसके लिए, कोई जतन तो करें।
दो क़दम तुम जो बढ़ो , दौड़ कर, हम गले से लगें
फासले हमने जो बनाए, आओ इसे दूर करें।
तेरे स्वाभिमान को, चोट, पहुँचाया था कभी
कभी मिलो तो, इस बात का, इकरार करें।
झूठे अहंकार में आकर, तुझे सताया था कभी
पुरानी भूलों का, एहसास अब, बेचैन करे।
सभी गुनाहों का हिसाब न दे पाउँगा मैं
मेरा ज़मीर ही, मुझको हर घड़ी शर्मसार करे.
तुम मुझे किसी दिन माफ करोगी, ऐसा लगता तो नहीं
मेरा दिल फिर भी, उस दिन का इंतज़ार करे।
आज मिल गई हो, बहुत फासले हैं मगर
मैं गुनाहगार हूँ तेरा, तुम मुझे अब माफ करो।
जब तुम ने कर लिया क़ुबूल, अपने गुनाहों को
फिर हम दोनों क्यों, वक्त यूँ बरबाद करें।
पुराने ज़ख्मों को न कुरेदो "राही"
आओ ! नए सिरे से, ज़िंदगी की शुरुआत करें।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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