मेम्बर बने :-

Saturday, December 22, 2012

दिलरुबा

PHOTO & GRAPHICS DESIGN BY R. K. SRIVASTAVA

            

       














         दिलरुबा
दिल में मंदिर की घंटी  जैसे  बजने लगी है,
लो वो आ गई ,   मेरी  दिलरुबा आ गई है।

चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
चाँदनी में नहाई , वो खड़ी सामने,
चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
एक नज़र में उतर गई, दिलों-जान में।

थी परेशानी  में, आँसू थे आँखों में,
वो घबराई हुई, खड़ी थी मेरे सामने,
चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
मैं तो खो ही गया था, उसके ख्याल में।

सर्द सी रात में, थी काले लिबास में,
लड़खड़ा कर  गिरी, मैं लगा थामने,
चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
वो नजर आई, काले बादलों  से घिरे चाँद में।

न थे हम होश में, न थी वो होश में,
हालातों को देख,सब-कुछ लगा जानने,
चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
मैंने उसको समेटा, अपनी बाहों में।


चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
चाँदनी में नहाई , वो खड़ी सामने,
चाँदनी रात में, चाँद के साथ में,
इस तरह मेरे  दिल को, दिलरुबा मिल गई।

                                                                 -राकेश कुमार श्रीवास्तव 


हैप्पी क्रिश्मस  !


Wednesday, December 19, 2012

आत्म-समर्पण

PHOTO-KRISHNA, MODEL & GRAPHICS DESIGN BY R. K. SRIVASTAVA
   

 आत्म-समर्पण


बीते       हुए,  हर   एक पल को
चाहकर भी, भुलाया नहीं जाता

दिल से सभी बातों  को
यूँ ही लगाया नहीं जाता

जिस पल तुम मिली, उस पल को
चाहे  तो  भी  मिटाया, नहीं जाता

समझ गई  तुम,  मेरे   एहसासों   को
समझे हुए को, समझाया नहीं जाता

मैं तैयार था, सबकुछ बताने को
तुम  से   तो, पूछा भी नहीं जाता

तुम छोड़ कर चली गई, हमें  मरने  को
अपनो को ऐसी सजा, दिया नहीं जाता

देखता हूँ, अपने अहंकार की दीवारों को
तोड़कर इसको,तुम्हें बुलाया नहीं जाता

आओगी,  उम्मीद    थी  इन  आँखों  को
आसुओं के, सैलाब को रोका नहीं जाता

संग जीने की, आदत हो गई थी मुझको
तेरे बिना अब,   जिया   भी   नहीं जाता

अब आ जाओ, कर दो गुलजार मेरी दुनिया को
तेरे दर पे खड़ा हूँ,  यहाँ  से   जाया  नहीं   जाता

बदल डालूँगा  तुम्हारी  खातिर, अपनेआप  को
इससे ज्यादा आत्म-समर्पण, किया नहीं जाता


                                                                                -राकेश कुमार श्रीवास्तव