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आवारा
आशिक
समेट
लो दामन में मुझको,
मैं
बिखड़ा हुआ हूँ,
सहारा
मुझको दे दो तुम,
अंदर
से टुटा हुआ हूँ.
बे-वजह
तुम से मिला और मेरा ये हाल
हुआ,
पहले
आवारा बादल सा,
मैं
जीवन जीता रहा हूँ.
मुझे
देख कर दहशत में जीते थे लोग,
अब
उन्हीं के ठोकरों पर,
मैं
जी रहा हूँ.
बहुत
ही कठिन है शराफ़त से जीना,
तेरी
सोहबत के ख़ातिर,
मैं
ये कोशिश कर रहा हूँ.
मुफ़लिसी
में जीना कोई मुश्किल नहीं
है,
बेबसी
में जीना है कैसा,
मैं
अब समझ रहा हूँ.
हौसलों
के आगे असफलता कब तक टिकेगी,
जैसा
चाहा था उसने वैसा,
मैं
अब बन गया हूँ.
कुछ
भी बन जाना ये मेरे हाथ में है
“राही”
वो
मेरी बनेगी एक दिन,
मैं
इंतज़ार कर रहा हूँ.
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मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'