वाक्यांश - बिरादरी
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सबसे पीछे खड़ा बुढ्ढा मंगलू बुदबुदाने लगा- हे भगवान ! न जाने आज कौन सा नया बखेड़ा ले कर आ गया और न जाने किस पर आज गाज गिरेगी।
आए दिन किरपाल सिंह कोई न कोई इल्जाम इन प्रवासी मज़दूरों पर लगा कर उनका शोषण करता था परंतु आज प्रवासी मज़दूरों में से चौबीस वर्षीय नौजवान मजदूर हरिया भी किरपाल सिंह से दो-दो हाथ करने को तैयार था। उसने किरपाल सिंह के सामने आकर बड़े रौबीले आवाज़ में पूछा - क्या हुआ किरपाल सिंह जी ? आज कौन सा नया बखेड़ा लेकर हमलोगों को परेशान करने आए हो ?
किरपाल सिंह को हरिया की बात तीर की तरह दिल पे लगी। उसने आव देखा न ताव, हरिया की तरफ झपटते हुए बोला - स्साले! तुझे बोलने की तो तमीज है नहीं और तेरी औकात क्या है जो इन सब का चौधरी बनने चला है। मेरी मोटर साईकल चोरी हो गई है और मुझे पक्का पता है कि तुम लोगों के अलावा यह काम कोई और नहीं कर सकता।
हरिया ने गुस्से में आकर बोला - ओये चुप कर किरपाल सिंह, नशे ने तेरी बुद्धि भ्रष्ठ कर दी है। नशे की खातिर तूने शहर के ठेकेदार जगतार सिंह को अपनी मोटर साईकल बेच कर इल्जाम हम लोगों पर लगाता है। तुझे शर्म नहीं आती, हमलोगों पर इल्जाम लगाते हुए।
इतना सुनते ही किरपाल सिंह अपने कमर से किरपान निकाल कर हरिया को मारने को बढ़ा। हरिया भी चीते जैसी फुर्ती दिखाते हुए एक कदम पीछे हो कर किरपाल सिंह के हाथ पर झपट्टा मारा और किरपान अपने हाथ में लेकर किरपाल सिंह को ललकारने लगा। उसकी तनी हुई भवें और फड़कते हुए बाजुओं को देख गाँव वाले सकते में आ गए।
उसके तेवर को देखते हुए एक बुजुर्ग ने सरपंच के कान में फुसफुसाया - "दिलदार सिंह ! मुझे साफ़ दिख यह है कि हरिया प्रवासी मज़दूर नहीं है। हरिया अपने ही बिरादरी का है और इससे किसी और तरीके से निपटेंगे। "
दिलदार सिंह ने धीमे से हाँ बोला और किरपाल को गालियाँ देता हुआ सभी को गाँव की तरफ चलने को कहा और सभी सिर झुकाए गाँव की तरफ चल दिए।
वाक्यांश - "शब्द–समूह के लिए एक शब्द"