रुको! सुन लो मेरी बात,
मैं जानता हूँ कि तुम नहीं मानोगे,
सुन लोगे मेरी बात बुजुर्ग मानकर,
लेकिन करोगे अपनी मन-मर्जी,
और पछताओगे समय निकल जाने पर,
जैसे, आज मैं सोचता हूँ,
क्यों नहीं मैंने मानी,
अपने बुजुर्गों की बात!
मैं मानता हूँ पीढ़ी के फासले को,
और मानता हूँ हमदोनों के सोचने के अंतर को,
पर शाश्वत सत्य कभी बदलते हैं भला,
जीवन शैली हमदोनों की जुदा हो सकती है,
मगर सफलता के सूत्र भी कभी बदलते हैं भला,
और छल-कपट से कभी सफल हो भी जाओ,
तो क्या तुम कभी बदल पाओगे,
समाज के घिनौने चेहरों को,
ऐसा नहीं है कि मैंने सफलता प्राप्त नहीं की,
और ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी,
फर्क है तो बस मापदंड का,
जी रहा होता और खुशहाल ज़िन्दगी,
अगर मैंने मानी होती,
अपने बुजुर्गों की बात!
इसलिए सुन लो मेरी बात,
युवा हो तुम ! है तुम में अनंत ऊर्जा,
हो जाओ तुम उश्रृंखल,
केवल मौज-मस्ती के लिए,
पर ध्यान रहे!
उससे अहित न हो दूसरों का,
शेष ऊर्जा को खर्च करो दिल खोल कर,
जो काम आए अपने और समाज के नव-निर्माण में,
मैं नहीं कहता कि तुम सभी भटके हुए हो,
मेरी सलाह उनके लिए जो युवा है आम,
रुको! सुन लो मेरी बात.
जिनसे मैं भी सीखता हूँ,
ऐसे युवाओं को पहुंचाना मेरा भी सलाम!
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"