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Friday, February 17, 2017

कलम की आवाज़










कलम की आवाज़ 

ना तुम बनना साहित्यकार,
नहीं तुम बनना रचनाकार,
रोजी-रोटी ये ना देगी 
नहीं सपना होगा साकार,
ना तुम बनना साहित्यकार ......

पेशा कोई चल जाएगा,
तुम को सब कुछ मिल जाएगा,
सुख-समृद्धि तब घर में होगी 
होगा नौकर बंगला कार 
नहीं तुम बनना साहित्यकार ......

ब्लैक-मनी, रिश्वतखोरी की
अलग से  एक अलख जगाना,
भोग-विलास के सभी साधन
तुमको भी, घर में है लाना,
कोई भी भूखे मर जाए या
या कोई भी अस्मत लूटे  
तुम को इससे क्या लेना है
इसके लिए है रचनाकार,
नहीं तुम बनना साहित्यकार ......

अगर तुम फिर भी नहीं माने,
तो तब सुन लो फिर क्या होगा,
महफ़िल में तालियां बजेगी 
पर घर इससे नहीं चलेगा .

जगत की सारी समस्या पर 
कागज़ काला करते रहना 
भैसों के आगे बीन बजा
अपना सिर ही धुनते रहना 
फिर भी हौसला बचा हो तो 
फिर तुम बनना साहित्यकार.

दिखाते रहो आईना तुम
अब तुम्हीं समाज को जगाना
गरीब और मजलूम की भी
तुम को आवाज़ है उठाना 
तुम्हारी कलम ही है इनकी
मौन चीत्कार  की पहचान  
तुम ही बनना साहित्यकार......

समाजवाद का परचम कभी
जब आसमान पर लहरेगा,
ना किसी की अस्मत लुटेगी,
नहीं कोई भूखा मरेगा, 
सब सपने होंगे साकार,
तुम ही बनना साहित्यकार......

कभी तेरी कलम से इक दिन
इंसाफ़ का सूरज निकलेगा,
बेईमानों-रिश्वतखोरों 
को अवश्य ही सज़ा मिलेगा .
तुम ही बनना साहित्यकार......

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"


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